राहत इंदौरी की मशहूर शायरी - गज़लें

 

राहत इंदौरी (1 January 1950 -11 August 2020) कोशिश किया करते कि उनकी शायरी को हर कोई समझ सके, इसके लिए वो बेहद आसान लफ्ज़ों का इस्तेमाल करते थे. यही वजह है कि उनकी गज़लें नौजवानों ही नहीं बूढ़े, बच्चों की ज़बानों पर भी रवां रहती हैं. हाल ही उनकी गज़ल का एक शेर इतना ज़्यादा मशहूर हो गया कि शायह कोई शख्स होगा जो उनके इस शेर से वाकिफ न हो, शेर कुछ यूं है कि, "बुलाती है मगर जाने का नहीं". तो आइए पढ़ते हैं उनकी ये मुकम्मल गज़ल.


राहत इंदौरी शायरी

 

बुलाती है मगर जाने का नहीं 

बुलाती है मगर जाने का नहीं 
ये दुनिया है इधर जाने का नहीं

मेरे बेटे किसी से इश्क़ कर 
मगर हद से गुज़र जाने का नहीं

ज़मीं भी सर पे रखनी हो तो रखो 
चले हो तो ठहर जाने का नहीं

सितारे नोच कर ले जाऊंगा मैं 
खाली हाथ घर जाने का नहीं

वबा फैली हुई है हर तरफ 
अभी माहौल मर जाने का नहीं

वो गर्दन नापता है नाप ले 
मगर जालिम से डर जाने का नहीं
-राहत इन्दौरी

शाखों से टूट जाए वो पते नहीं है हम
आंधी से कह दे कोई अपनी औकात में रहे

फूंक डालूँगा मै किसी रोज दिल की दुनिया
ये तेरा ख़त तो नहीं है कि जला भी न सकूँ

राहत इंदौरी की मशहूर किताबें ( Rahat Indori Books)



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कहीं अकेले में मिल कर झिंझोड़ दूँगा उसे

जहाँ जहाँ से वो टूटा है जोड़ दूँगा उसे



मोड़ होता है जवानी का सँभलने के लिए

और सब लोग यहीं आ के फिसलते क्यूं हैं



मैं पर्बतों से लड़ता रहा और चंद लोग

गीली ज़मीन खोद के फ़रहाद हो गए


Rahat induari shayari


कश्ती तेरा नसीब चमकदार कर दिया 

इस पार के थपेड़ों ने उस पार कर दिया


अफवाह थी की मेरी तबियत ख़राब हैं 

लोगो ने पूछ पूछ के बीमार कर दिया


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आसमान लाये हो ले आओ ज़मीन पर रख दो


मेरे हुजरे में नहीं और कही पर रख दो 

आसमान लाये हो ले आओ ज़मीन पर रख दो


मैंने जिस ताक में कुछ टूटे दीए रखे हैं 

चाँद तारों को भी ले जाके वही पर रख दो 


अब कहाँ ढूंढने जाओगे हमारे कातिल 

आप तो क़त्ल का इल्ज़ाम हमी पर रख दो


हो वो जमुना का किनारा ये कोई शर्त नहीं 

मिटटी मिटटी ही में रखनी है कही पर


लोग हर मोड़ पर रुक - रुक के संभलते क्यों है


लोग हर मोड़ पर रुक - रुक के संभलते क्यों है

 इतना डरते है तो फिर घर से निकलते क्यों है


मैं ना जुगनू हूँ दिया हूँ न कोई तारा हूँ 

रौशनी वाले मेरे नाम से जलते क्यों हैं


नींद से मेरा ताल्लुक ही नहीं बरसों से

ख्वाब आ आ के मेरी छत पे टहलते क्यों हैं


मोड़ तो होता हैं जवानी का संभलने के लिये 

और सब लोग यही आकर फिसलते क्यों हैं


रातों को चांदनी के भरोसें ना छोड़ना 


रातों को चांदनी के भरोसें ना छोड़ना 

सूरज ने जुगनुओं को ख़बरदार कर दिया


रुक रुक के लोग देख रहे है मेरी तरफ

तुमने ज़रा सी बात को अखबार कर दिया 


इस बार एक और भी दीवार गिर गयी 

बारिश भी मेरे घर को हवादार कर दिया


बोल था सच तो ज़हर पिलाया गया मुझे 

अच्छाइयों ने मुझे गुनहगार कर दिया


दो गज सही ये मेरी मिलकियत तो हैं 

ऐ मौत तूने मुझे ज़मीदार कर दिया


राहत इंदौरी की मशहूर शायरी - गज़लें


वो शख्स सिर्फ भला ही नहीं, बुरा भी है...

जो मेरा दोस्त भी है, मेरा हमनवा भी है, 

वो शख्स सिर्फ भला ही नहीं, बुरा भी है...


मैं पूजता हूँ जिसे, उससे बेनियाज़ भी हूँ, 

मेरी नज़र में वो पत्थर भी है, खुदा भी है...


सवाल नींद का होता तो कोई बात ना थी, ह

मारे सामने ख्वाबों का मसअला भी है...


जवाब दे ना सका और बन गया दुश्मन, 

सवाल था के तेरे घर में आईना भी है...


ज़रूर वो मेरे बारे में राय दे लेकिन, 

ये पूछ लेना कभी मुझसे वो मिला भी है...


- राहत इंदौरी


अभी गनीमत है सब्र मेरा, अभी लबालब भरा नहीं हूं 


अभी गनीमत है सब्र मेरा, अभी लबालब भरा नहीं हूं 

वो मुझको मुर्दा समझ रहा है, उसे कहो मैं मरा नहीं हूं 


वो कह रहा है कि कुछ दिनों में मिटा के रख दूंगा नस्ल तेरी है 

उसकी आदत डरा रहा है, है मेरी फितरत डरा नहीं हूं


बुझते हुए दिए की तरह, जल रहे हैं हम


साँसों की सीडियों से उतर आई जिंदगी

बुझते हुए दिए की तरह, जल रहे हैं हम


उम्रों की धुप, जिस्म का दरिया सुखा गयी हैं 

है हम भी आफताब, मगर ढल रहे हैं हम


सारी बस्ती क़दमों में है


सारी बस्ती क़दमों में है, ये भी इक फ़नकारी है 

वरना बदन को छोड़ के अपना जो कुछ है सरकारी है


कालेज के सब लड़के चुप हैं काग़ज़ की इक नाव लिये 

चारों तरफ़ दरिया की सूरत फैली हुई बेकारी है


फूलों की ख़ुश्बू लूटी है, तितली के पर नोचे हैं

ये रहजन का काम नहीं है, रहबर की मक्कारी है 


हमने दो सौ साल से घर में तोते पाल के रखे है 

मीर तक़ी के शेर सुनाना कौन बड़ी फ़नकारी है


अब फिरते हैं हम रिश्तों के रंग-बिरंगे ज़ख्म लिये 

सबसे हँस कर मिलना-जुलना बहुत बड़ी बीमारी है


दौलत बाजू हिकमत गेसू शोहरत माथा गीबत होंठ 

इस औरत से बच कर रहना, ये औरत बाज़ारी है


कश्ती पर आँच आ जाये तो हाथ कलम करवा देना 

लाओ मुझे पतवारें दे दो, मेरी ज़िम्मेदारी है...


काश तुझको किसी शायर से मोहब्बत हो जाए


जागने की भी, जगाने की भी, आदत हो जाए 

काश तुझको किसी शायर से मोहब्बत हो जाए


दूर हम कितने दिन से हैं, ये कभी गौर किया 

फिर न कहना जो अमानत में खयानत हो जाए



मैं वो दरिया हूँ कि हर बूँद भंवर है जिसकी


तेरी हर बात मोहब्बत में गवारा करके

दिल के बाज़ार में बैठे हैँ ख़सारा करके


एक चिन्गारी नज़र आई थी बस्ती मेँ उसे

वो अलग हट गया आँधी को इशारा करके


 मुन्तज़िर हूँ कि सितारों की ज़रा आँख लगे

चाँद को छत पे बुला लूँगा इशारा करके


मैं वो दरिया हूँ कि हर बूँद भंवर है जिसकी

तुमने अच्छा ही किया मुझसे किनारा करके



ये किसने कह दिया तुमसे इनका बम से रिश्ता है 

बहुत हैं जख्म सीने में, फकत मरहम से रिश्ता है


बोतलें खोल कर तो पी बरसों 

आज दिल खोल कर भी पी जाए


लहू को रंग जुनूं को कलम बनाने लगे 

हम अपने शहर को शहर-ए-सितम बनाने लगे 

ये किसने छीन ली बच्चों के हाथ से मिट्टी 

जो कल खिलौने बनाते थे बम बनाने लगे



मुझे वो छोड़ गया ये कमाल है उसका 

इरादा मैंने किया था के छोड़ दूँगा उसे



मैंने अपनी आँखों से लहू छलका दिया


मैंने अपनी खुश्क आंखों से लहू छलका दिया

एक समन्दर कह रहा है मुझे पानी चाहिए


बनके एक हादसा बाज़ार में आ जायेगा


बनके एक हादसा बाज़ार में आ जायेगा 

जो नही होगा वो अखबार में आ जायेगा 

चोर उच्चकों की करो कद्र, के मालुम नही, 

कौन कब कौन सी सरकार में आ जाएगा



न हम-सफ़र न किसी हम-नशीं से निकलेगा 

हमारे पाँव का काँटा हमीं से निकलेगा


राज़ जो कुछ भी हो इशारों में बता भी देना

हाथ जब उससे मिलाना थोड़ा दबा भी देना


दोस्ती जब किसी से की जाए 

दुश्मनों की भी राय ली जाए है


राहत इंदौरी शायरी

अब ना मैं वो हूँ, ना बाकी हैं ज़माने मेरे 

फिर भी मशहूर हैं शहरों में फ़साने मेरे


ज़िन्दगी है तो नये ज़ख़्म भी लग जायेंगे 

अब भी बाकी हैं कई दोस्त पुराने मेरे


उसे अब के वफ़ाओं से गुजर जाने की जल्दी थी, 

मगर इस बार मुझ को अपने घर जाने की जल्दी थी, 


मैं आखिर कौन सा मौसम तुम्हारे नाम कर देता, 

यहाँ हर एक मौसम को गुजर जाने की जल्दी थी।



उंगलियां यूं न सब पर उठाया करो


उंगलियां यूँ न सब पर उठाया करो 

खर्च करने से पहले कमाया करो


ज़िन्दगी क्या है खुद ही समझ जाओगे 

बारिशों में पतंगें उड़ाया करो


दोस्तों से मुलाक़ात के नाम पर 

नीम की पत्तियों को चवाया करो


शाम के बाद जब तुम सहर देख लो

कुछ फ़कीरों को खाना खिलाया करो


अपने सीने में दो गज़ ज़मीं बांधकर 

आसमानों का ज़र्फ़ आज़माया करो


चांद सूरज कहा, अपनी मंज़िल कहां 

ऐसे वैसों को मुंह मत लगाया करो



नयी हवाओं की सोहबत बिगाड़ देती है 

कबूतरों को खुली छत बिगाड़ देती हैं

जो जुर्म करते है इतने बुरे नहीं होते 

सज़ा न देके अदालत बिगाड़ देती हैं



ये ज़रूरी है कि आँखों का भरम क़ाएम रहे 

नींद रक्खो या न रक्खो ख़्वाब मेयारी रखो



अब हम मकान में ताला लगाने वाले हैं 

पता चला हैं की मेहमान आने वाले हैं


आँखों में पानी रखों, होंठो पे चिंगारी रखो

जिंदा रहना है तो तरकीबे बहुत सारी रखो


तूफ़ानों से आँख मिलाओ, सैलाबों पर वार करो

मल्लाहों का चक्कर छोड़ो, तैर के दरिया पार करो


उस की याद आई है साँसो ज़रा आहिस्ता चलो

धड़कनों से भी इबादत में ख़लल पड़ता है


ऐसी सर्दी है कि सूरज भी दुहाई मांगे

जो हो परदेस में वो किससे रज़ाई मांगे



घर के बाहर ढूँढता रहता हूँ दुनिया

घर के अंदर दुनिया-दारी रहती है


अपने हाकिम की फकीरी पर तरस आता है

…… जो गरीबों से पसीने की कमाई मांगे


फैसला जो कुछ भी हो, हमें मंजूर होना चाहिए

जंग हो या इश्क हो, भरपूर होना चाहिए


हम से पहले भी मुसाफ़िर कई गुज़रे होंगे

कम से कम राह के पत्थर तो हटाते जाते


बहुत ग़ुरूर है दरिया को अपने होने पर

जो मेरी प्यास से उलझे तो धज्जियाँ उड़ जाएँ


रोज़ तारों को नुमाइश में खलल पड़ता हैं


रोज़ तारों को नुमाइश में खलल पड़ता हैं 

चाँद पागल हैं अंधेरे में निकल पड़ता हैं


मैं समंदर हूँ कुल्हाड़ी से नहीं कट सकता 

कोई फव्वारा नही हूँ जो उबल पड़ता हैं


कल वहाँ चाँद उगा करते थे हर आहट पर

अपने रास्ते में जो वीरान महल पड़ता है


ना त-आरूफ़ ना त-अल्लुक हैं, मगर दिल, 

अक्सर नाम सुनता हैं तुम्हारा तो उछल पड़ता हैं


उसकी याद आई हैं साँसों ज़रा धीरे चलो 

धड़कनो से भी इबादत में खलल पड़ता हैं


राहत इंदौरी की मशहूर शायरी - गज़लें


Rahat Indori Ki Shayari


जुबां तो खोल, नज़र तो मिला, जवाब तो दे

मैं कितनी बार लुटा हूँ, हिसाब तो दे


ख़याल था कि ये पथराव रोक दें चल कर

जो होश आया तो देखा लहू लहू हम थे


बीमार को मरज़ की दवा देनी चाहिए

मैं पीना चाहता हूँ पिला देनी चाहिए


फूलों की दुकानें खोलो, खुशबू का व्यापार करो

इश्क़ खता है तो, ये खता एक बार नहीं, सौ बार करो


इश्क ने गूथें थे जो गजरे नुकीले हो गए

तेरे हाथों में तो ये कंगन भी ढीले हो गए


मैं आ कर दुश्मनों में बस गया हूँ

यहाँ हमदर्द भी हैं दो-चार मेरे


हर एक हर्फ़ का अंदाज़ बदल रखा हैं

आज से हमने तेरा नाम ग़ज़ल रखा हैं


बहुत ग़ुरूर है दरिया को अपने होने पर

जो मेरी प्यास से उलझे तो धज्जियां उड़ जाएं


मैं आख़िर कौन सा मौसम तुम्हारे नाम कर देता

यहाँ हर एक मौसम को गुज़र जाने की जल्दी थी


किसने दस्तक दी, दिल पे, ये कौन है

आप तो अन्दर हैं, बाहर कौन है


मिरी ख़्वाहिश है कि आँगन में न दीवार उठे

मिरे भाई मिरे हिस्से की ज़मीं तू रख ले



मेरा नसीब, मेरे हाथ कट गए वरना

मैं तेरी माँग में सिन्दूर भरने वाला था


यहीं हुसैन भी गुज़रे यहीं यज़ीद भी था 
हज़ार रंग में डूबी हुई ज़मीं हूं मैं 


ये बूढ़ी क़ब्रें तुम्हें कुछ नहीं बताएंगी 
मुझे तलाश करो दोस्तो यहीं हूं मैं 




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राहत इंदौरी की मशहूर शायरी - गज़लें राहत इंदौरी की मशहूर शायरी - गज़लें Reviewed by Stay@positve on August 12, 2020 Rating: 5

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